।। आखिरी चेतावनी।।

posted by: Manas Kumar

।। आखिरी चेतावनी।।
दक्षिण दिशा को जाता विश्व,
खलबली मचती मानचित्र में,
शहरों में ऊँघतीं चेतनाएँ,
कोलाहल कैसा विचित्र ये।

नित नई विकृत आकांक्षाएँ,
चीरतीं धरा का हृदय अनवरत,
विच्छिन्न होती प्रकृति-चित्रलेखा,
दनु-पुत्रों को मिलता अथाह रक्त।

शक्ति का उन्मादी स्वर ले,
घूमते मतवाले हाथी,
जाते कानन उजाड़ते,
रोकते नदियों की धारा।

विचलित होता समुद्र,
अधीर होता पावस निढ़ाल,
संसृति होती म्लान,
बढ़ता जाता तम का ज्वाल।

ज्ञान दंभ में होते रहते
नए-नए अनुसंधान,
परमाणु परीक्षण करते, दिखाते जग को
स्वहंता विषवाण।

और प्रतिफल मिलता, सिर्फ हानि,
मानो हुई कोई आकाशवाणी,
सब प्रखर प्रमाद लेख,
मिट जाएगा जो भी है शेष।

शायद यही है आखिरी चेतावनी,
देख मरघट में विचरण करती यम-सहवासिनी,
मोक्ष को लालायित बस्तियां,
पीपल पे टंगे घटों में परिजन ढूंढे अस्थियां।

इस शून्यकाल में खुद से करना प्रश्न तुम,
तुम हो मानव न की प्राणी नृशंस तुम,
बहुत बारूदी युद्ध से खुद को ही किया क्षत-विक्षत,
ठहरो भी अब, बदलो ये राह जो है असत्।

कोई नहीं यहां सर्वशक्तिमान,
केवल हो प्रकृति माँ का गुणगान,
स्वर्ग भी यहीं हो, यहीं हो सुरगान,
सौम्य, सुरभित मही का हो यशगान।

: मानस




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Manas Kumar
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